अध्याय २
य: सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्।
नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।५७।।
स्थित प्रज्ञ, नित्य समाधि स्थित की स्थिति बताते हुए भगवान कहते हैं, हे अर्जुन!
शब्दार्थ :
१. जो सर्वत्र स्नेह रहित हुआ,
२. शुभ और अशुभ को प्राप्त होकर,
३. न हर्ष करता है, न द्वेष करता है,
४. उसकी बुद्धि स्थिर है।
तत्व विस्तार :
जिसे, यदि शुभ मिल जाये तो वह महा मुदित होकर उससे अनुराग नहीं करता, यदि अशुभ मिल जाये तो वह द्वेष पूर्ण होकर उससे घृणा रूपा संग नहीं करता, वह स्थित प्रज्ञ होता है।
शुभ :
नन्हीं! प्रथम शुभ को समझ लो!
शुभ का अर्थ है :
1. जो कल्याण कारक हो।
2. जो मंगल कारक हो।
3. जो समृद्धि देने वाला हो।
जीवन में शुभ वह होगा, जो आपके सौभाग्य को प्रदुर करे तथा आपको प्रतिष्ठा देने वाला हो।
अशुभ :
अब अशुभ समझ ले! शुभ के लिये जो कुछ भी कहा, उसका विपरीत अशुभ कहलाता है।
भगवान कहते हैं स्थित प्रज्ञ को जीवन में शुभ मिल जाये या अशुभ मिल जाये, वह दोनों को जीवन में बराबर समझता है। शुभ पाकर वह :
क) इतराता नहीं।
ख) अभिमान पूर्ण नहीं हो जाता।
ग) शुभ से संग नहीं कर लेता।
घ) जीवन में शुभ से बिछुड़ने से डरता नहीं, ‘अशुभ’ जिसे वह :
1. अरुचिकर जानता है,
2. अकल्याणकारक जानता है,
3. अमंगलकारक जानता है,
4. मलिन तथा अपावन भी जानता है,
5. पाप पूर्ण तथा दुर्भाग्य को उत्पन्न करने वाला भी जानता है,
वह स्थित प्रज्ञ ऐसे अशुभ गुणों से पूर्ण लोगों अथवा परिस्थितियों से भी द्वेष नहीं करता।
उसे जैसा भी और जो भी मिल जाये, वह उसे उदासीन भाव से स्वीकार करता है। न वह किसी भी परिस्थिति से भागना चाहता है और न ही वह किसी भी परिस्थिति से संग करके उसे बनाये रखना चाहता है। वह तो पूर्णतय: ‘अनभिस्नेह‘ है।
यानि :
1. आसक्ति रहित है।
2. अभिलाषा रहित है।
3. अनुराग रहित है।
नन्हीं! यह तब ही हो सकता है यदि जीव अपने तनत्व भाव से परे हो जाये। याद रहे, यहाँ स्थित प्रज्ञ, नित्य समाधिस्थ के चिह्न बता रहे हैं। भगवान कहते हैं कि ऐसे निरासक्त की बुद्धि ठहरी हुई होती है।
मेरी नन्हीं जान्! यह उस समाधिस्थ के जीवन की सहज स्थिति बता रहे हैं। जीवन में उन्हें जो और जैसा भी मिल जाये, वे राग द्वेष में नहीं बंध जाते। वे तो जो जैसा आये, उसके लिये जो उचित हो, निरपेक्ष भाव से वैसा ही कर देते हैं। वे चलते फिरते, सब काम करते हुए भी सम भाव में ही रहते हैं। उनके जीवन में ही यह प्रमाण मिलता है।