अध्याय २
यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम्।
सुखिन: क्षत्रिया: पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्।।३२।।
हे अर्जुन!
शब्दार्थ :
१. यह युद्ध, तुझे स्वत: प्राप्त हुआ,
२. स्वर्ग का खुला द्वार है,
३. बड़े भाग्यवान क्षत्रियों को,
४. ऐसे युद्ध में भाग लेने का मौका मिलता है।
तत्व विस्तार :
भगवान अर्जुन से कहने लगे, हे अर्जुन!
1. यह युद्ध तुम्हारी इच्छा और यत्न के बिना हो रहा है।
2. तुम अब तक सब कुछ सहते रहे, आज भी सह सकते हो, यह युद्ध तो तुम पर नाहक आरोपित किया गया है।
3. तुम युद्ध करना भी नहीं चाहते, यह तो अपना सर्वस्व लुटाने के लिये किया गया है।
4. तुम तो दुश्मन को भी अंग लगाना चाहते हो और,
5. तुम तो दिनचर्या के लिये पाँच ग्राम से भी संतुष्ट हो जाते।
6. तूने तो सन्धि करने के बहु यत्न किये।
7. तुम्हारे साथ तो अन्याय हुआ, परन्तु तुम फिर भी क्षमा करने को तैयार रहे।
8. यह युद्ध तो तुम पर आरोपित किया गया है, तुम तो लड़ना भी नहीं चाहते थे।
9. तुम्हारी चाहना तो युद्ध करने की थी ही नहीं, तुम तो अपने लिये कुछ भी नहीं चाहते थे।
10. ऐसा युद्ध तो दुष्ट की अति करने पर ही छिड़ता है।
11. उन दुष्टों का नाश तुम्हारा कर्तव्य है।
12. धर्म संस्थापना अर्थ जो युद्ध करे, उसके लिये स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं।
13. असत्, अन्याय, अत्याचार को रोकने के लिये, जो तुम अपने प्राण देने को तैयार हो, यही धर्म युद्ध है।
ऐसा मौका मिलना ही दुर्लभ है और ऐसा मौका गंवा देना मूर्खता है।
क्षत्रिय धर्म :
क्षत्रिय का धर्म समझ ले :
क) अपने देश के लिये प्राणों की बाज़ी लगा देना।
ख) अपने देश की प्रजा की शान्ति के लिये अपने प्राणों को न्योछावर कर देना।
ग) अपने देश के संरक्षण के लिये युद्ध करना।
घ) शत्रुता का दमन करना क्षत्रिय धर्म है।
ङ) शत्रुता के प्रहार से साधु को बचाना क्षत्रिय धर्म है।
च) ऊधम मचाने वालों और शान्ति भंग करने वालों से प्रजा की रक्षा करना क्षत्रिय का धर्म है।
छ) अत्याचारी तथा पापियों से प्रजा का संरक्षण करना, क्षत्रिय का धर्म है।
ज) अपने देश रूपा घर में नित्य शान्ति बनाये रखना, क्षत्रिय का धर्म है।
झ) अपने देश की प्रजा के लिये न्याय का संरक्षण करना क्षत्रिय का धर्म है।
ण) धर्म की संस्थापना अर्थ, अपनी जान की बाज़ी लगा देना क्षत्रिय का धर्म है।
ट) युद्ध करना क्षत्रिय का धर्म है।
अधिकांश क्षत्रिय को किसी बाहर के देश से लड़ना मिलता है, किसी बाहर के लोभी शत्रु से देश को बचाना होता है। अपने ही घर में धर्म स्थापित करने का मौका तो किसी भाग्यवान को ही मिलता है। यह भगवान कह रहे हैं।