अध्याय २
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना।।२८।।
पुन: भगवान अर्जुन के दृष्टिकोण से कहते हैं कि यदि तू मानता है कि देही जन्मता और मरता है, तब भी यूँ समझ ले!
शब्दार्थ :
१. हे अर्जुन!
२. सब भूत अव्यक्त आदि वाले हैं,
३. सब भूत अव्यक्त अन्त वाले हैं,
४. केवल मध्य में ही व्यक्त होते हैं,
५. फिर इस विषय में विलाप कैसा?
तत्व विस्तार :
क) जन्म से पहले आप क्या थे, कौन थे, यह आप क्या जानें?
ख) जन्म से पहले आप जो भी थे, वह आप जान भी नहीं सकते।
ग) जन्म से पहले आप जो भी थे, वह आप से ही छिपा हुआ है।
घ) जन्म से पहले आप जो भी थे, वह आपके लिये अचिन्त्य तथा अज्ञेय है।
ङ) फिर मृत्यु के पश्चात् क्या होगा, वह भी तो आप नहीं जान सकते।
च) मृत्यु के पश्चात् जो होगा, वह भी तो आप से अव्यक्त ही होगा।
केवल थोड़े समय के लिये, जब आप तन धारण किये हुए हो, तब ही तो :
1. सब कुछ देख सकते हो।
2. सब कुछ जान सकते हो।
3. सब कुछ मान सकते हो और कह सकते हो।
4. सब कुछ समझ सकते हो।
5. सब कुछ, इन्द्रिय राही प्रत्यक्ष सामने पाते हुए अनुभव कर सकते हो।
6. विभिन्न विषयों का चिन्तन और मनन कर सकते हो।
किन्तु जब न आगे की जानते हो, न पीछे की जानते हो और यह भी जानते हो कि इस तन की मृत्यु निश्चित ही है, तब किसी भी बात का शोक करना मूर्खता है।
परिदेवना का अर्थ है :
विलाप करना, रुदन करना, पीड़ित होना, क्षोभ करना, शोक करना, चिन्ता करना।
नन्हीं! यह सब सुन कर तू अपने लिये यूँ समझ कि :
क) तन तो मृत्यु पायेगा ही, इसको मृत्यु की ओर बढ़ते देख कर,
1. मन को कभी दु:खी मत करना।
2. मन में व्याकुलता न ले आना।
3. मन में शोक तथा क्षोभ न भर लेना।
4. मन को नाहक विक्षिप्त न कर लेना।
ख) तन तो मृत्युधर्मा है, मर ही जायेगा। इसलिये :
1. इस बेवफ़ा तन से बहुत वफ़ा करनी अच्छी नहीं।
2. जितनी घड़ियाँ इस तन ने तुम्हारा साथ दिया, उतनी ही बड़ी बात है।
3. जीवन का भी लोभ न कर, कौन जाने कौन सी घड़ी अन्तिम होगी। जिस तन का तू भूत और आगामी नहीं जानती, उसकी चिन्ता करना मूर्खता है।
4. फिर, तन तो तुम्हारे अधीन है, तुम इसकी नौकरी क्यों करती हो?
5. जब तक तन है, इस राही जीवन में कोई श्रेष्ठ कर्म कर।
तुम्हारा कर्तव्य अपने आपको जानना है, अपने स्वरूप में स्थित होने के साधन करना है। श्रेष्ठ बनना ही तुम्हारा कर्तव्य है और श्रेष्ठ गुणों को अपने जीवन में लाना ही तुम्हारा धर्म है। सो मेरी नन्हीं जान्! तू भी यही कर।