अध्याय २
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:।।३७।।
देख नन्हीं साधिका! अब भगवान अर्जुन को क्या कहते हैं! कहने लगे हे अर्जुन!
शब्दार्थ :
१. या तो मर कर तू स्वर्ग को प्राप्त करेगा,
२. नहीं तो जीत कर पृथ्वी का राज्य भोगेगा।
३. इसलिये युद्ध का निश्चय करके खड़ा हो जा।
तत्व विस्तार :
देख! भगवान अर्जुन को युद्ध के लिये मनाते हुए उसे प्रलोभन देते हुए कहते हैं, “युद्ध कर।
यदि तू मर गया तो तुझे स्वर्ग मिलेगा और यदि तू जीत गया, तो भी तुझे पृथ्वी भर का राज्य मिलेगा।”
देख! भगवान
क) अर्जुन को सत् पथ दर्शाने के लिये,
ख) अर्जुन का मोह मिटाने के लिये,
ग) अर्जुन का शोक मिटाने के लिये,
घ) अर्जुन को कर्तव्य की ओर आकर्षित करने के लिये, क्या क्या कह रहे हैं!
देख! भगवान अर्जुन को धर्म युद्ध करने के लिये कैसे मनाते हैं। भगवान कहते हैं, “यदि तू मर भी गया तो स्वर्ग को पायेगा।”
प्रथम इसे समझ लो! यदि जो जन्म मिलता है, वह जीव के कर्मों के अनुसार मिलता है, तो :
1. पुण्य कर्म का फल पुण्य ही होगा।
2. धर्म की स्थापना अर्थ जीवन देने वाले को धर्मयुक्त लोक ही मिलेगा।
3. न्याय के उपासक तथा संरक्षक को न्याय पूर्ण लोक ही मिलेगा।
4. क्षमा, दया, करुणा पूर्ण जीव को इन गुणों के फल स्वरूप, इन्हीं गुणों से भरपूर जहान मिलेगा।
5. जग कल्याण करने वाले जीवात्मा को, कल्याण पूर्ण लोक ही मिलेगा।
6. उदार हृदय वाला, उदारता पूर्ण घर में ही जन्म लेगा तथा वह अपने मानसिक दृष्टिकोण को भी, हर जन्म में साथ ही पायेगा। यानि :
क) उसे ईमानदारी से अनुराग ही होगा।
ख) वह सत्य निष्ठा पूर्ण ही होगा।
ग) वह परम गुण भक्त ही पैदा होगा।
घ) वह कृतज्ञता पूर्ण ही पैदा होगा।
ङ) वह न्याय पूर्ण ही पैदा होगा।
ऐसे गुण उसमें भरपूर होंगे। वह ऐसे वातावरण में ही जन्म लेगा, जहाँ पर नित्य सुखी रहेगा। शुभ कर्म करने वाला कल्याण कारक कुल में ही जन्म लेगा। शुभ कर्म करने वाले धर्मात्मा कुल में ही जन्म लेगा।
सो भगवान कहते हैं – यदि तू मर गया, तो तू स्वर्ग पायेगा और गर जीवित रहा, तो तू राज्य का सुख भोगेगा।
साधक!
1. तू भगवान से कुछ न माँगना।
2. भगवान स्वयं आदेश दे रहे हैं, तुम्हारे लिये इतना ही काफ़ी होना चाहिये।
3. तुमने तो अपना तन भगवान को देना है। तुम स्वयं वही करोगे जो तुम्हारी जगह गर भगवान होते तो करते।
4. गीता को अपना मस्तिष्क बना ले, तब ही गीता की प्रतिमा स्वरूप, कृष्ण रूप धारण कर सकोगे।
5. धर्म की स्थापना करने वाला तेरा तन भगवान को मिल जायेगा।
6. इसी विधि तुम्हारा मिलन भगवान से हो जायेगा।
7. जग में पुन: धर्म स्थापित हो जायेगा।
8. तुम्हारा अपना जीवन ही ज्ञान का प्रमाण बन जायेगा।
इस कारण साधक! तू भी उठ और दैवी सम्पदा का अभ्यास कर; न्याय परायण हो जा और तनत्व भाव छोड़ कर परम के गुणों से प्रीत जोड़ ले।