Chapter 2 Shloka 27

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।

तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।२७।।

To relieve Arjuna of his anxiety, Bhagwan reiterates:

He who is born will eventually die

and will be reborn.

In this inevitability

there is no cause for you to grieve.

Chapter 2 Shloka 27

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।

तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।२७।।

To relieve Arjuna of his anxiety, Bhagwan reiterates:

He who is born will eventually die and will be reborn. In this inevitability there is no cause for you to grieve.

The Lord says to Arjuna:

1. “It is not wise to grieve over what must happen.

2. It is not right to grieve for a situation for which there is no remedy.

3. To feel sorrow for an event that one cannot change or conquer, is not appropriate.

4. Why fear the inevitable?

5. Why fight with that which has to happen?”

Little one, you also must understand that death is inevitable; to fear it is stupidity. The body will die and mingle with the dust – why make it a cause for grief? So do not give up your duty, your dharma and your principles. Why not consider that if death is certain, one should accept what the Lord has said as His Will and injunction and obey Him? If death is the end of birth and birth is a certain corollary of death, why not give at least one life to the Lord? Some years of this life have already gone by; can you not give the remaining years of this life to your Lord? Your own benefit – your own happiness and eternal joy also lie in this.

अध्याय २

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।

तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।२७।।

अर्जुन के शोक निवारण अर्थ भगवान फिर से कहते हैं :

शब्दार्थ :

१. क्योंकि जन्मे हुए की तो मृत्यु निश्चित है,

२. और मरे हुए का जन्म निश्चित है,

३. इसलिये इस अटल बात में तुझे शोक करना उचित नहीं।

तत्व विस्तार :

भगवान कहते हैं, अर्जुन!

1. जो अवश्यम्भावी है, उसके लिये शोक करना उचित नहीं।

2. जिसका इलाज कोई नहीं, उसके लिये शोक करना उचित नहीं।

3. जिसको बदल न सको, उसके लिये शोक करना उचित नहीं।

4. जिसको पराजित न कर सको, उसके लिये शोक करना उचित नहीं। यानि जो होना ही है, उससे क्या डरना?

5. जो होना ही है, उससे क्यों भिड़ते हो?

6. जो होना ही है, उसके कारण क्यों शोक युक्त हो गये हो?

नन्हीं! तू भी समझ ले। मृत्यु तो आयेगी ही, उससे डरना मूर्खता है। तन माटी बन ही जायेगा, इसलिये मृत्यु का शोक व्यर्थ है। इस कारण अपना धर्म, अपना कर्तव्य और अपनी सत्यता न छोड़ देना। और क्यों न कहूँ, जब मृत्यु होनी ही है, तो इस जीवन में भगवान की बात ही मान ले। जो भी वह कहते हैं, उसे उनका आदेश जान कर अपने जीवन में ले आओ। भाई! जब जन्म के बाद मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के बाद पुन: जन्म निश्चित है, तो एक जीवन भगवान को भी दे दिया तो क्या हुआ? कुछ तो बीत ही चुका है, जो बाकी रह गया है, उतना ही उन्हें दे दो। वास्तव में तुम्हारा फ़ायदा भी इसी में है, तुम्हारा सुख भी इसी में है और नित्य आनन्द भी इसी में है।

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