Chapter 6 Shloka 38

कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति।

अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मण: पथि।।३८।।

Bewildered on the path of Brahm,

without support, rent asunder like a cloud

and thus alienated from both paths,

is he not then destroyed?

Chapter 6 Shloka 38

कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति।

अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मण: पथि।।३८।।

Arjuna inquires further about one who is waylaid on the path of yoga:

Bewildered on the path of Brahm, without support, rent asunder like a cloud and thus alienated from both paths, is he not then destroyed?

What happens to the one:

a) who has gone astray from the path of Brahm?

b) who has surrendered worldly attractions to some extent but yet not achieved God realisation?

c) who has become somewhat free of worldly attachment but is not completely unfettered?

d) who has neither attained the Supreme, nor the world?

e) who has lost his link with life yet not achieved union with the Lord, are all paths closed to such a one?

Will such a one be destroyed even if he is full of faith? He has faith in the Lord, but has strayed due to his inability to understand the complete path. The mind played tricks and waylaid that pilgrim and ensnared him in illusion. He was unable to understand the crux of the attributes of Prakriti and was lost in the constituents of those attributes.

In such a condition, if he is thus overtaken by death or the passage of time, does such a one perish like the dispersal of clouds in the sky? Unable to achieve the world or the Lord, is such a one completely destroyed?

अध्याय ६

कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति।

अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मण: पथि।।३८।।

अर्जुन अपना अभिप्राय और स्पष्ट करते हुए पथ भ्रष्ट के विषय में पूछने लगे:

शब्दार्थ :

१. क्या ब्रह्म पथ से मोहित हुआ,

२. आश्रय रहित हुआ (तथा) बादलों की तरह छिन्न भिन्न हुआ,

३. इस प्रकार से दोनों पथों से विभ्रान्त हुआ,

४. वह नष्ट तो नहीं हो जाता?

तत्व विस्तार :

अर्जुन पूछते हैं कि उसका क्या होगा :

1. जो ब्रह्म पथ पथिक, पथ भूल गया हो।

2. जिसने जहान भी कुछ कुछ छोड़ दिया हो पर ब्रह्म को भी अभी न पाया हो।

3. जिसका कुछ कुछ विषयन् से संग छूट गया हो, किन्तु जो पूर्ण छूट न सका हो विषयों के अनुराग से।

4. जिसे न भगवान मिला न जहान मिला।

5. जिसका जीवन से साथ भी कुछ छूट गया और परम से योग भी टूट गया, क्या उसके लिये सब मार्ग ही बन्द हो जाते हैं?

गर वह श्रद्धावान् हुआ तो क्या तब भी वह नष्ट हो जायेगा? श्रद्धा तो उसकी भगवान में थी किन्तु पथ समझ ही न पड़ा और वह भरमा गया। मन ने ऐसा कुछ जादू किया कि उसे राहों में ही हर लिया। माया ने भरमा दिया, गुण राज़ शायद न समझ सका और मोह ग्रसित राहों में हो गया, या काल ने ग्रसित कर लिया तथा मृत्यु ने उसे आ घेरा, तो क्या वह छिन्न भिन्न हो जायेगा बादलों की तरह? वह संसार और भगवद् प्राप्ति, दोनों राहों में भ्रष्ट हुआ नष्ट तो नहीं हो जाता?

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