अध्याय १
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागता:।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षव:।।२३।।
अर्जुन कहते हैं भगवान से :
शब्दार्थ :
१. दुर्बुद्धि दुर्योधन का,
२. युद्ध में कल्याण चाहने वाले,
३. जो जो लोग यहाँ (इस सेना में) आये हैं,
४. उन युद्ध करने वालों को मैं देखूँगा।
तत्व विस्तार :
देख नन्हीं! एक ओर साधु स्वभाव अर्जुन है और दूसरी तरफ़ लोभ तथा भ्रष्टाचार पूर्ण दुर्योधन है। न्याय प्रिय तथा सत् प्रिय अर्जुन कहने लगे कि :
क) अहंकार की शक्ति को,
ख) अहंकार पूर्ण के सहयोगी गणों को,
ग) अन्यायी का साथ निभाने वाले अन्यायियों को,
घ) अत्याचारी से डर जाने वालों को,
ङ) छल कपट तथा बेरहम का साथ देने वालों को,
च) दुर्बुद्धि दुर्योधन का समर्थन करने वाले जो हैं, उन सबको मैं देख तो लूँ।
भाई! दुर्बुद्धि का साथ देने वाले स्वयं भी दुर्बुद्धि होते हैं। पाप पूर्ण का साथ देने वाले स्वयं भी पाप पूर्ण होते हैं। अन्यायी का साथ देने वाले स्वयं भी अत्याचारी होते हैं। चोर का साथ देने वाले स्वयं भी चोर होते हैं। बहाने जितने मर्ज़ी लगा लें!
असत् पथिक के बहाने :
नन्हीं! बहाने अनेकों होते हैं, जैसे :
क) कोई अपने पुत्र का लिहाज़ करता है।
ख) कोई अपने पति या पत्नी के प्रति कर्तव्य का आसरा ले लेते हैं।
ग) कोई अपने तर्क वितर्क को मिथ्या सिद्धान्तों पर आधारित कर देते हैं।
घ) कोई मान या धन चाहने वाले अपने ही ढंग के बहाने लगा देते हैं। यानि, जैसा जी चाहे वैसे ही बहाने लगा देते हैं,
किन्तु अपना फ़ायदा ही देखते हैं। उन्हें सत् से, न्याय से, प्रेम से, वफ़ा से, करुणा से, क्षमा से, यानि उन्हें भगवान के गुणों से प्रेम नहीं होता। ऐसे साधक भी अहंकार पूर्ण दुर्बुद्धि ही होते हैं।
साधक सावधानी :
किन्तु सत् पथिक राहों के विघ्नों को :
क) सावधान होकर देखते हैं।
ख) दक्षता से देखते और समझते हैं।
ग) निपुण तथा प्रवीण दृष्टि से देखते हैं।
– कौन कैसा और कितना बलवान है?
– कौन सी वृत्ति हमारी किस ओर रुचि रखती है?
– कौन सी वृत्ति हमारी, हमें बार बार दबा लेती है? इसे ध्यान से देखते हैं।
घ) अपनी आशा और चाहनाओं को भी ध्यान से देखते हैं।
ङ) अपनी मान्यताओं वा अपनी मानसिक ग्रन्थियों को वे ध्यान से देखना चाहते हैं।
च) अपने मानसिक, शारीरिक तथा बुद्धि के प्रतिबन्धों को वे जानना चाहते हैं।
छ) सत् में जो विघ्न आ जाते हैं, उन्हें भी वे जानना चाहते हैं।
ज) सत् पथ अनुसरण में जो विघ्न आ जाते हैं, उन्हें भी वे जानना चाहते हैं। जो भी आधुनिक अवस्था है, साधक उसे भगवान के साक्षित्व में जानना चाहता है।
इसी कारण अर्जुन दुर्योधन के सहयोगियों को देखना चाहता है।