अध्याय १
भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिंजय:।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च।।८।।
अब दुर्योधन अपनी सेना के कुछ सेनापतियों के नाम द्रोणाचार्य को सुनाते हैं और कहते हैं कि ‘हमारी सेना में :
शब्दार्थ :
१. आप और भीष्म पितामह हैं;
२. तथा कर्ण और संग्राम विजयी कृपाचार्य हैं;
३. तथा वैसे ही अश्वत्थामा हैं;
४. विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा भी है।’
तत्व विस्तार :
दुर्योधन द्रोणाचार्य को अपने सेनापतियों के नाम बड़ी नीति से बताते हैं।
उन्होंने कहा -‘सर्व प्रथम तो आप ही हैं हमारे सेनापति।’
यह कह कर द्रोणाचार्य के अहंकार को जगाया। यह कह कर मानो कह रहे हों कि ‘हम उचित पथ पर ही हैं।’
1. आप, हमारे आचार्य भी हमारे साथ हैं।
2. भीष्म पितामह, हमारे कुल के सबसे बड़े भी हमारे साथ हैं।
3. कर्ण, जो पाण्डवों का भाई है, वह भी हमारे साथ है।
4. कृपाचार्य, जो आपका साला है और महा आचार्य है, वह भी हमारे साथ है।
5. आपका पुत्र अश्वत्थामा भी हमारे साथ ही है।
6. विकर्ण, हमारा भाई, जिसने द्रौपदी चीर हरण के समय हमें ही ग़लत ठहराया था, आज वह भी हमारे साथ है।
7. फिर, भूरिश्रवा, जो बड़े बड़े पुण्य तथा यज्ञ करने वाला है, वह भी हमारे साथ है।
मानो दुर्योधन अपने इस युद्ध को द्रोणाचार्य के पास न्याय संगत ठहराना चाहता है, इस कारण कह रहा है कि :
1. आप ब्राह्मणों में श्रेष्ठ हैं, आप हमारे साथ हैं।
2. भीष्म, हमारे कुल के मुखिया हमारे साथ हैं।
3. कृपाचार्य और आप भी आचार्य, दोनों हमारे साथ हैं।
4. आपका कुल भी हमारे साथ है यानि आपका पुत्र और साला हमारे साथ हैं।
5. हमारा ही भाई जिसकी सहानुभूति कभी पाण्डवों के साथ थी, आज वह भी हमारे साथ है।
6. जीवन में धर्मात्मा तथा अनेकों यज्ञ करने वाला भूरिश्रवा भी हमारे साथ है।
7. पाण्डवों का अपना भाई कर्ण भी हमारे साथ है।
यानि गुरु, कुल पिता, आपका कुल और सहज जीवन में श्रेष्ठ गण सब हमारे साथ हैं। यानि, ज्ञानवान्, कुल तथा जग का शिक्षित वर्ग भी हमारे साथ है।
इसलिये इससे जान लो कि हम जो कर रहे हैं, उचित ही है।
जीवन में भी दुर्योधन के समान दुष्ट लोग यही करते हैं। झूठ सच बोल कर और डरा धमका कर वे लोगों का सहयोग प्राप्त करते हैं।
अहंकार भी यही करता है।
सत्यप्रिय आभा! जीवन में लोग भी यही करते हैं।
1. राजाओं से डर कर अन्यायी का साथ दे देते हैं।
2. राज्यपति से डर कर सच्चाई तथा सच्चे लोगों का साथ छोड़ देते हैं।
3. अपनी तरक्की की ओर ध्यान देते हुए झूठे का साथ दे देते हैं।
4. अपनी शान्ति तथा सुख का ध्यान रखते हुए झूठ का साथ दे देते हैं।
धन, मान, सुख, चैन, भोगैश्वर्य से संग करने वाले, सहज में ही दूसरे के बहकावे में आ जाते हैं। वे गिरते हुए का साथ नहीं देते। वे अपना धन, मान इत्यादि बचा कर रखना चाहते हैं।
इस कारण वे सत् की ओर से आँख मूंद लेते हैं और असत् का अनुसरण करते हैं।