Chapter 11 Shloka 36

अर्जुन उवाच

स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।

रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघा:।।३६।।

A deeply affected Arjuna says to Lord Krishna:

O Krishna, it is but right that the world glorifies You

and rejoices and is filled with love for You.

Fear makes the demons flee in all directions and

the gatherings of Perfect Beings pay homage to You.

Chapter 11 Shloka 36

अर्जुन उवाच

स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।

रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघा:।।३६।।

A deeply affected Arjuna says to Lord Krishna:

O Krishna, it is but right that the world glorifies You and rejoices and is filled with love for You. Fear makes the demons flee in all directions and the gatherings of Perfect Beings pay homage to You.

Arjuna began to say to the Lord, that it is true that:

a) This entire world glorifies You.

b) Despite singing Your praises, nobody knows You.

c) They are drawn to you to the extent that they understand you.

d) Their devotion increases in ratio to their glorification of You. Latent energy lies in singing Your praises.

e) Attachment with the world is thus eradicated and their devotion is augmented.

f) Whosoever takes Your name, becomes joyous. All his sorrows are annihilated in a moment.

g) Your glory is immeasurable; it purifies the mind-stuff instantly.

h) Demons cannot endure You. They flee in fear of You. They try to hide from You, but even where they seek to conceal themselves, You are there.

i)  You are the Destroyer of sin, You are Purity itself.

j)  The Perfect Beings pay obeisance to You, the very Embodiment of Purity.

Total and perpetual is their humble obeisance – for once they have bowed their heads before the Lord, His reign begins. They surrender to the Lord their body, mind and intellect whilst still in the full bloom of life . When attachment even to the life breath ceases, the Lord Himself comes to dwell in the body of such a devotee. When he bows before the Lord his ‘I’ is annihilated forthwith, for the Lord does not enter until the ‘I’ departs. The moment he offers his life breath to the Lord, the Lord comes to life within that body.

Devotional praise – Kirtan

Kirtan means: To glorify, to sing praises of the Lord’s attributes, to call out or pray to, to reincarnate, to announce.

Little one, the true meaning of Kirtan is to understand the attributes of the Lord and to proclaim their inculcation in one’s life. The Lord’s true glorification and reincarnation is only possible when those who glorify His qualities, imbibe those divine qualities in their lives. If a true devotee understands the qualities that are apparent in the Lord’s life, he will necessarily emulate them. The attachment of such a devotee with the divine qualities will be further augmented.

When you sing praises of the Lord, you call Him the Embodiment of compassion, forgiveness and of love for His devotees, the Annihilator of all sorrows. If you endeavour to imbibe these very qualities in your life, you will look upon everyone with compassion. Criticism and grudges will automatically cease and you will forgive all. You will try to absorb the sorrow of others. You will then become infinitely pure within.

अध्याय ११

अर्जुन उवाच

स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।

रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघा:।।३६।।

गद्गद् अर्जुन बोला कृष्ण से :

शब्दार्थ :

१. हे कृष्ण! यह योग्य ही है कि,

२. आपके कीर्तन से जग हर्षित होता है

३. और अनुराग को भी प्राप्त होता है।

४. भयभीत हुए असुर गण दिशाओं में भागते हैं

५. और सब सिद्ध गणों के समुदाय आपको नमस्कार करते हैं।

तत्व विस्तार :

अर्जुन कहने लगे भगवान से, ‘यह उचित ही है कि,

क) जग सारा तेरे गुण गाता है।

ख) गा गाकर महिमा तुम्हारी, फिर भी तुझे कोई जान नहीं पाता।

ग) जितना जितना जाने तुझे, तुम्हारी ओर उतना ही आकर्षण बढ़ जाता है।

घ) गुण गाने में निहित शक्ति है। जितने गुण गायें, उतनी ही निरन्तर भक्ति और बढ़ जाती है।

ङ) जग आसक्ति स्वत: मिट जाती है और तुझ में भक्ति स्वत: बढ़ जाती है।

च) जो तेरा नाम लेता है, मुदित मनी वह हो जाता है। उसके पूर्ण दु:ख पल में विनष्ट हो जाते हैं।

छ) अपरम्पार तेरी महिमा है, जो पल में चित्त को पावन कर देती है।

ज) असुर तुझे नहीं सह सकते, वे भयभीत होकर भागते हैं। तुमसे छुपे हुए फिरते हैं वे, पर तुम वहाँ भी होते हो जहाँ वे तुमसे भाग कर जाते हैं।

झ) पाप विनाशक परम पावन तू आप है।

ञ) सिद्ध गण तुझे नमन करें, महा पावनता तू आप है।

सिद्ध गण का नमन है पूर्ण नमन,

इक बार झुके तो झुके रहे।

इक बार जो सीस झुका दिया,

फिर सीस पे राम ही राज्य करे।।

तन मन बुद्धि जीते जी,

वे भगवान को दे देते हैं।

प्राणों से भी जब संग मिटे,

भगवान वास वहाँ करते हैं।।

नमन हुआ तो मैं गया,

बिन मैं के गये न राम आयें।

जिस पल प्राणा राम को दे,

सप्राण राम वहाँ हो जायें।।

कीर्तन :

कीर्तन का अर्थ है,

1. यशोगान करना।

2. गुणों का गान करना।

3. स्तुति करना।

4. पुकारना तथा प्रार्थना करना।

5. पुनरावृत्ति करना।

6. घोषणा करना।

नन्हीं! कीर्तन का वास्तविक अर्थ है भगवान के गुणों को समझ कर उन्हें अपने जीवन में लाने की घोषणा करना।

भगवान की वास्तविक ख्याति तथा पुनरावृत्ति तो तब ही हो सकती है यदि उनके गुणों का यशोगान करने वाले स्वयं उनके गुणों की प्रतिमा बन जायें। भगवान के सहज जीवन में उनके जो गुण दिखते हैं, उन्हें यदि सच्चा भक्त समझेगा तो वह उन्हें अपने जीवन में लाना चाहेगा। उस भक्त का अनुराग भागवत् और दैवी गुणों से और बढ़ जायेगा।

भगवान की जब महिमा गाते हो तो उसे करुणापूर्ण, क्षमा स्वरूप, भक्त वत्सल, दु:ख विमोचक इत्यादि कहते हो। यदि यही गुण आप अपने में ले आओ तो आप सब पर करुणापूर्ण दृष्टि रखोगे, गिले शिकवे छोड़ कर सबको क्षमा करोगे, सबके दु:ख हरने का प्रयत्न करोगेतब आप स्वयं भी पावन ही हो जाओगे।

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