Chapter 11 Shloka 34

द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथान्यानपि योधवीरान्।

मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान्।।३४।।

Do not fear and kill these valiant warriors

Dronacharya, Bhishma Pitamah, Jayadrath, Karna

and many others who are already killed by Me.

You will assuredly conquer your foes in battle.

Therefore fight!

Chapter 11 Shloka 34

द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथान्यानपि योधवीरान्।

मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान्।।३४।।

The Lord says to Arjuna:

Do not fear and kill these valiant warriors Dronacharya, Bhishma Pitamah, Jayadrath, Karna and many others who are already killed by Me. You will assuredly conquer your foes in battle. Therefore fight!

The Lord is now encouraging Arjuna to fight.

O Arjuna!

1. Do not be afraid of your foes – fight! Your victory is assured.

2. Do not hesitate to participate in this war. You shall definitely win.

3. Do not be alarmed upon witnessing the armies of your foes. There is no cause for fear.

4. Do not hesitate in killing the great teacher Drona or Grandsire Bhishma.

5. Do not be afraid to kill Jayadrath and Karna. All these great warrior have already been killed.

Little one, you must understand why the Lord took the names of all these people and why Arjuna was afraid of opposing them:

a) Dronacharya was an extremely proficient teacher of archery. He had also been Arjuna’s Guru in the past.

b) Bhishma Pitamah, Arjuna’s revered Grandsire, was also proficient in wielding arms. He had been conferred the boon of dying at will. He had defeated several powerful warriors in the past.

c) Jayadrath was the husband of the only daughter of Dhritrashtra. His father had undertaken severe austerities, resulting in the boon that whoever caused Jayadrath’s head to fall to the ground, would have his own head burst into thousands of smithereens.

d) Karna, born of the womb of Kunti, Arjuna’s mother, was endowed with great prowess by his father – the Sun deity.

Knowing all this, and seeing all these people facing him in battle, it was but natural for Arjuna to become anxious.

The Lord said, ‘Arjuna! Their death is approaching. Don’t be afraid – fight! Victory is yours.’

अध्याय ११

द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथान्यानपि योधवीरान्।

मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान्।।३४।।

भगवान कह रहे हैं देख अर्जुन!

शब्दार्थ :

१. द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह,

२. जयद्रथ और कर्ण,

३. तथा अन्य भी बहुत से

४. मेरे द्वारा मारे हुए,

५. शूरवीर योद्धाओं को तू मार और भय मत कर!

६. युद्ध में तू निश्चित ही वैरियों को जीतेगा।

७. इसलिए युद्ध कर!

तत्व विस्तार :

अब भगवान, अर्जुन को उत्साह देते हुए कहने लगे कि,

हे अर्जुन!

1. तू अपने शत्रुओं से डर नहीं और युद्ध कर, तू निश्चित जीतेगा।

2. तू युद्ध से संकोच मत कर, तू निश्चित जीतेगा।

3. जिनकी सेना देख कर तू घबरा गया है, वहाँ घबराने की कोई बात नहीं है।

4. तू आचार्य तुल्य द्रोण को मारने से मत घबरा,

5. पितामह भीष्म को मारने से मत घबरा,

6. जयद्रथ (धृतराष्ट्र की इकलौती बेटी का पति) को मारने से मत घबरा,

7. कर्ण की मृत्यु से भी न घबरा,

ये सब तो पहले ही मारे जा चुके हैं।

नन्हीं! भगवान ने इन सबके नाम क्यों लिये और अर्जुन उनसे क्यों घबराता था, इसे समझ ले!

क) द्रोणाचार्य धनुर्विद्या में अति विशिष्ट गुरु थे और दिव्य शस्त्रों से युक्त थे। यह अर्जुन के भी गुरु रह चुके थे।

ख) भीष्म अर्जुन के पूज्य पितामह थे तथा शस्त्र प्रवीण भी थे। इन्हें स्वेच्छा से मरने का वरदान भी मिला हुआ था। अति बलवान शस्त्र धारियों को इन्होंने अनेक बार पराजित किया था।

ग) जयद्रथ धृतराष्ट्र की इकलौती कन्या के पति थे। इनके पिता ने महा तप किया था जिसके प्रताप से जो भी जयद्रथ के सिर को धरती पर गिराता, उसके अपने सिर के सहस्रों टुकड़े हो जाते।

घ) कर्ण अर्जुन की माँ की कोख से ही उत्पन्न हुआ था, जिसे सूर्य ने अत्यन्त शक्ति दे रखी थी। कर्ण सूर्य पुत्र थे।

इन सबको जानते हुए और अपने सम्मुख देखते हुए अर्जुन का घबरा जाना सहज ही बात थी।

भगवान ने कहा, अर्जुन! इन सबकी मौत तो आई हुई ही है। तू अब न घबरा और युद्ध कर। विजय तुम्हारी ही होगी।

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