Chapter 11 Shloka7

इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्।

मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि।।७।।

O Arjuna, behold concentrated within

this body of Mine this entire creation,

including both the animate and the inanimate;

also perceive whatever else you desire to see.

Chapter 11 Shloka 7

इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्।

मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि।।७।।

The Lord now says to Arjuna:

O Arjuna, behold concentrated within this body of Mine this entire creation, including both the animate and the inanimate; also perceive whatever else you desire to see.

The Lord calls Arjuna by the name of ‘Gudakesh’. Little one, first understand the connotation of Gudakesh (गुडाकेश).

1. One who has controlled sleep.

2. One who has controlled laziness and sloth.

3. One who has controlled the sense organs.

Little one, it is only one who has thus gained control over himself, who can concentrate single-mindedly. Such a one will be unperturbed by all sense contacts and the consequences thereof.

Remember that Arjuna was caught in the dilemma of moral principles. Therefore he was immensely perturbed. However, He was extremely knowledgeable and wise and full of self-control, thus he was able to understand the Lord’s words.

The Lord began to say, “This entire world including the animate and the inanimate are all contained within Me. O Arjuna, whatever else you perceive or wish to perceive in this universe, is also contained within Me.”

The Lord is referring to His body form in terms of the Atma and is granting to Arjuna, the vision of this entire creation within His Atma Self. He is saying, “This creation abides in Me.” He is the Atma Itself, therefore the world rests in Him. The Lord is using His body as a symbol for the Atma, wherein this entire universe is contained.

अध्याय ११

इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्

मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि।।७।।

भगवान अब अर्जुन को कहते हैं :

शब्दार्थ :

१. अर्जुन! अब इस मेरे शरीर में,

२. एक ही जगह स्थित हुए,

३. चर अचर सहित पूर्ण जगत को

४. और भी जो देखना चाहता है (उसे भी देख ले)।

तत्व विस्तार :

यहाँ भगवान ने अर्जुन को ‘गुडाकेश’ कहा।

नन्हीं! पहले गुडाकेश का अर्थ समझ ले।

1. जो निद्रा को वश में किए हुए हो।

2. जो आलस्य को वश में किए हुए हो।

3. जो इन्द्रियों को वश में किए हुए हो।

नन्हीं! जो गुडाकेश होगा, वह अनन्य ध्यान लगा सकेगा। वह अपनी इन्द्रियों तथा इन्द्रिय सम्पर्क के परिणाम रूप फल से विचलित नहीं होगा।

याद रहे, अर्जुन सिद्धान्तों के द्वन्द्व में फंस गये थे इस कारण घबरा गये थे। वैसे तो वह महा ज्ञानवान् तथा संयम पूर्ण थे, तभी तो वह भगवान की बातों को समझ पा रहे हैं।

भगवान कहने लगे, ‘मुझ आत्म स्वरूप में ही यह सम्पूर्ण सृष्टि और पूर्ण चर अचर स्थित हैं। हे अर्जुन! तू संसार में जो और जिसे भी देखना चाहता है, उसे देख ले, यह सब मुझ में ही स्थित हैं।’

भगवान इस समय अपने आत्म स्वरूप को अपना देह मान रहे हैं और अपने आत्म स्वरूप में ही सम्पूर्ण सृष्टि के दर्शन करवा रहे हैं। वह यहाँ बता रहे हैं कि, ‘यह संसार मुझी में है।’ वह स्वयं आत्म तत्व ही हैं, इस नाते संसार उनमें ही है। मानो वह आत्म को अपना शरीर कह रहे हैं, जिसमें सम्पूर्ण समष्टि समाहित है।

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