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Chapter 4 Shloka 28
द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञा योगयज्ञास्तथापरे।
स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतय: संशितव्रता:।।२८।।
Bhagwan continues: Some perform yagya with material possessions,
some perform yagya by observing austerities;
some offer sacrifice through the practise of Yoga,
whereas some diligent endeavourers, with passionate resolve,
perform the yagya of knowledge and self study.
Chapter 4 Shloka 28
द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञा योगयज्ञास्तथापरे।
स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतय: संशितव्रता:।।२८।।
Bhagwan continues:
Some perform yagya with material possessions, some perform yagya by observing austerities; some offer sacrifice through the practise of Yoga, whereas some diligent endeavourers, with passionate resolve, perform the yagya of knowledge and self study.
Little one, first understand Dravya Yagya (द्रव्य यज्ञ).
1. The practicant of this yagya donates his wealth to others.
2. He uses his wealth to give happiness to others.
3. He uses his wealth to lessen the sorrow of others.
4. He earns wealth and gives it to others.
5. He uses his wealth to establish others.
6. He donates his wealth to charity.
7. He utilises his wealth for the dissemination of knowledge.
8. He donates his wealth for activities which pursue excellence and greatness.
The practicants of dravya yagya strive for detachment with wealth and the elimination of greed.
Tap Yagya (तप यज्ञ)
a) The observers of Tap yagya practice self control.
b) They strive to build their powers of endurance and patience.
c) They learn to tolerate adversity.
d) They seek to endure the ‘heat and cold’ of life.
e) They practice forbearance.
f) They try to quell the mind.
g) Thus, they bear the most terrible atrocities with a smile.
h) They strive to learn to sacrifice their own needs and respond to the needs of others.
i) They practice the acceptance of indignities and insults.
j) They offer their mind as oblation in this yagya.
It is through the austerities of tap yagya that one can obtain Supreme knowledge. This is also the best method to attain the state of silence.
Yoga Yagya (योग यज्ञ)
Those who practice Yoga yagya, strive for union with the Atma.
1. They constantly practice the cessation of identification with the body.
2. They strive to attain the intellect of equanimity.
3. They strive to transcend the gunas.
4. They strive to attain a stable intellect.
5. They endeavour to perform selfless actions.
6. They endeavour to become completely detached.
7. They practice self control.
8. They constantly try to make their entire life a continuous yagya.
9. Their endeavour is to attain the state of samadhi.
Swadhyay Yagya (स्वाध्याय यज्ञ)
1. Such sadhaks make a personal study of the Scriptures.
2. They educate themselves about Truth.
3. They remind themselves of the knowledge of the Scriptures.
4. They constantly remind themselves of the Lord and His injunctions.
5. They depend upon themselves.
6. They ruminate in their own mind.
7. They debate and discuss within themselves.
8. They reflect in their own mind on the role of the gunas.
9. They strive to bring the Truth into their lives.
10. They endeavour to realise their true essence, the Self, through meditation.
Gyan Yagya (ज्ञान यज्ञ)
Little one, through this yagya, the sadhak accumulates knowledge and makes every effort to disseminate and preach that knowledge. He strives to augment his intellect and studies several Scriptures towards this end. He learns several branches of knowledge and teaches them too.
All those who perform these varied yagyas:
a) are of a strong resolve;
b) are vigilant and persevering;
c) endeavour for the success of their efforts with shrewdness and efficiency;
d) often have to face several difficulties and practice numerous restraints.
अध्याय ४
द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञा योगयज्ञास्तथापरे।
स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतय: संशितव्रता:।।२८।।
अब भगवान कहते हैं कि :
शब्दार्थ :
१. इस प्रकार कोई द्रव्य यज्ञ,
२. कोई तप यज्ञ
३. और कोई योग यज्ञ करते हैं;
४. और तीक्ष्ण व्रत वाले यत्नशील लोग
५. स्वाध्याय तथा ज्ञान यज्ञ करते हैं।
तत्व विस्तार :
नन्हीं! पहले ‘द्रव्य यज्ञ’ समझ ले!
द्रव्य यज्ञ में जीव :
क) अपना धन औरों को दे देता है।
ख) अपने धन से औरों के जीवन में सुख पहुँचाता है।
ग) अपने धन से औरों के दु:ख कम करने के यत्न करता है।
घ) औरों के लिये धन कमा कर देता है।
ङ) अपना धन लगा कर औरों को स्थापित करता है।
च) अपना धन दान में दे देता है।
छ) अपना धन, ज्ञान की वृद्धि के लिये दे देता है।
ज) अपना धन श्रेष्ठता की ओर ले जाने वाले कार्यों के लिये दे देता है।
द्रव्य यज्ञ करने वाले धन से नि:संगता तथा लोभ रहितता का अभ्यास करते हैं।
तप यज्ञ :
तप यज्ञ करने वाले साधक :
1. आत्म संयम का अभ्यास करते हैं।
2. सहिष्णुता का अभ्यास करते हैं।
3. अपनी तितिक्षा बढ़ाने का अभ्यास करते हैं।
4. विपरीतता को सहन करने का अभ्यास करते हैं।
5. सर्दी और गर्मी को सहने का अभ्यास करते हैं।
6. धैर्य का अभ्यास करते हैं।
7. अपने मन को मारने के यत्न करते हैं।
8. बहु भीषण अत्याचार भी मुसकरा कर सहते हैं।
9. आत्म त्याग करने का अभ्यास करते हैं।
10. आत्म तिरस्कार भी सहने का अभ्यास करते हैं।
11. अपने मन की आहुति देते रहते हैं।
तप यज्ञ के राही ही भागवद् ज्ञान की प्राप्ति होती है। मौन स्थिति पाने का यह सर्वोत्तम उपाय है।
योग यज्ञ :
योग यज्ञ करने वाले साधक अपनी आत्मा से योग के चाहुक होते हैं। ये लोग निरन्तर :
क) अपने तनत्व भाव को त्यागने के यत्न करते हैं।
ख) समत्व बुद्धि पाने के यत्न करते हैं।
ग) गुणातीत बनने के प्रयत्न करते हैं।
घ) स्थिर बुद्धि बनने के प्रयत्न करते हैं।
ङ) निष्काम कर्म करने के यत्न करते हैं।
च) निरासक्त बनने के प्रयत्न करते हैं।
छ) संयम में रहने के प्रयत्न करते हैं।
ज) जीवन को भी यज्ञमय बनाने के प्रयत्न करते हैं।
झ) समाधि अवस्था पाने के प्रयत्न करते हैं।
स्वाध्याय यज्ञ :
स्वाध्याय यज्ञ करने वाले :
1. स्वयं शास्त्रों का पठन करते हैं।
2. स्वयं अपने आपको सत्त्व सिखाते तथा समझाते हैं।
3. स्वयं अपने आपको ज्ञान सुझाते हैं।
4. स्वयं अपने आपको भगवान के विषय में सुझाते हैं।
5. स्वयं अपने आप पर निर्भर होते हैं।
6. स्वयं अपने ही मन में विचार करते हैं।
7. स्वयं अपने आप से तर्क वितर्क करते हैं।
8. स्वयं मन में गुणों का चिन्तन करते हैं।
9. सत्त्व को जीवन में लाने का स्वयं प्रयत्न करते हैं।
10. ध्यान की राह से अपने आपको जानने के प्रयत्न करते हैं।
ज्ञान यज्ञ :
नन्हीं! ज्ञान यज्ञ में साधक ज्ञान उपार्जित करते हैं और फिर ज्ञान का प्रचार भी करते हैं। जहाँ से भी ज्ञान मिले, उसे एकत्रित करते हैं। वे अपना बुद्धि वर्धन चाहते हैं; अनेकों शास्त्र पढ़ते हैं; विविध विद्याओं को सीखते हैं तथा सिखाते हैं।
नन्हीं! यह सम्पूर्ण यज्ञों को करने वाले:
क) बहु तीव्र व्रत धारी होते हैं।
ख) बहु यत्नशील लोग होते हैं।
ग) बहुत सावधान होते हैं।
घ) बड़ी दक्षता तथा निपुणता से अपने यज्ञ की सफ़लता के प्रयत्न करने वाले होते हैं।
ङ) इन यज्ञों को करने के लिये उन्हें अनेक कष्ट सहने पड़ते हैं।
च) इन यज्ञों को करने वालों को अनेकों संयम भी करने पड़ते हैं।