Chapter 14 Shloka 20

गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्।

जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते।।२०।।

The embodied Atma transcends the three gunas

from whence the body has arisen;

freed from the miseries of birth, death

and old age, he attains immortality.

Chapter 14 Shloka 20

गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्।

जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते।।२०।।

Describing the fruits of knowing the Atma to be a non-doer, the Lord says, O Arjuna!

The embodied Atma transcends the three gunas from whence the body has arisen; freed from the miseries of birth, death and old age, he attains immortality.

Little one, listen! Having known the qualities,

a) knowing their interplay,

b) knowing their crux,

c) knowing their supremacy,

d) knowing their inevitability,

e) knowing their predominance,

f) knowing that they are inanimate,

the jivatma or mortal being transcends those qualities, and uninfluenced by them, becomes a gunatit.

1. He thus abides in eternal bliss.

2. He becomes enriched with divine qualities.

3. He transcends duality.

4. He transcends both joy and sorrow.

Little one, the body originates from the threefold energy of Prakriti. Attachment to the three gunas and their influence creates the seeds of action and binds the mortal to the body self. The body is in fact the manifestation of these three gunas.

a) When the individual understands these gunas fully, he renounces attachment with them.

b) Having understood the gunas, the individual spontaneously relinquishes the thought of doership and enjoyership.

c) He then automatically renounces attachment with the body self.

He is not even attached then to the various phases of bodily existence and is thus emancipated from the anguish caused by birth, death, old age, disease etc. Thus he is established in eternal bliss and enjoys immortality.

Little one, he who realises the essence of the qualities to be gross and inanimate,

1. How will he ever be influenced by any qualities?

2. How will he blame others for the qualities they possess?

3. He will not develop attachment with others’ nor with his own qualities.

4. The mental reactions caused by the influence of qualities will cease.

5. All internal rebellion will cease.

6. No aberrations or turmoil will arise in the mind.

7. His mind will be free from excessive attachment and repulsion.

8. His mind-stuff will soon be purified.

Little one, such a one will automatically transcend all qualities and become a gunatit. He, whom no qualities can influence, will inevitably abide in eternal bliss. He will merge in the Supreme Brahm.

अध्याय १४

गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्।

जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते।।२०।।

आत्मा को अकर्ता तथा गुणातीत जानने का फल बताते हुए भगवान कहने लगे, हे अर्जुन!

शब्दार्थ :

१. जीवात्मा, स्थूल शरीर की उत्पत्ति के कारण रूप,

२. इन तीनों गुणों का उल्लंघन करके,

३. जन्म, मृत्यु, वृद्ध अवस्था और दु:ख से छूट कर,

४. अमृत को प्राप्त होता है।

तत्त्व विस्तार :

नन्हीं जाने जान् सुन! गुण विवेक से,

क) गुण खिलवाड़ जान कर,

ख) गुणों का राज़ जान कर,

ग) गुणों का राज्य जान कर,

घ) गुणों की विवशता जान कर,

ङ) गुणों की प्रधानता जान कर,

च) गुणों को जड़ जान कर,

जीवात्मा गुणातीत बन जाता है।

गुण संग छोड़ कर जीव :

1. नित्य आनन्द को पा लेता है।

2. दैवी सम्पदा सम्पन्न हो जाता है।

3. नित्य द्वन्द्व रहित हो जाता है।

4. गुणातीत हो जाता है।

5. सुख दु:ख से परे हो जाता है।

नन्हूं! स्थूल शरीर की उत्पत्ति का कारण त्रिगुणात्मिका शक्ति है। इन गुणों से संग और प्रभाव के कारण ही कर्म फल बीज बनते हैं। फिर, इन गुणों से संग ही जीव को तन से बांधता है। इन गुणों का रूप ही तो यह तन है।

क) जब जीव इन गुणों को अच्छी प्रकार से समझ जाता है तो वह गुण संग को त्याग देता है।

ख) गुण विवेक के पश्चात् जीव कर्तृत्व भाव और भोक्तृत्व भाव का स्वत: त्याग कर देता है।

ग) गुण विवेक के पश्चात् जीव मानो देह अभिमान का भी स्वत: त्याग कर देता है।

तब वह तन की विभिन्न अवस्थाओं से भी संग नहीं कर सकता और जन्म मृत्यु, जरा और अन्य दु:खों से विमुक्त हो जाता है। फिर वह नित्य आनन्द स्वरूप में स्थित होकर, अमृत को भोगता है।

नन्हीं! बात भी सच्ची है, जिसने यह जान लिया कि सम्पूर्ण गुण जड़ हैं,

1. वह किसी के भी गुणों से प्रभावित कैसे होगा?

2. वह किसी के भी गुणों का दोष उन्हें कैसे दे सकेगा?

3. वह सम्पूर्ण लोगों के और अपने भी गुणों से संग नहीं कर सकेगा।

4. गुणों के कारण उसके मन में प्रतिद्वन्द्व उठने बन्द हो जायेंगे।

5. उसमें विद्रोह उठने बन्द हो जायेंगे।

6. उसमें कभी विक्षेप नहीं होगा।

7. उसमें विकार नहीं उठेंगे।

8. उसमें द्वेष या राग नहीं उठेंगे।

9. उसका चित्त स्वत: निर्मल होता जायेगा।

नन्हूं! वह स्वत: गुणातीत हो ही जायेगा। जिसे गुण कभी भी प्रभावित नहीं कर सकते, वह तो नित्य आनन्द में ही रहेगा, वह तो ब्रह्म में समा ही जायेगा।

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