Chapter 14 Shloka 8

तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्।

प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत।।८।।

Know that the quality of tamas

is born of ignorance and deludes all beings.

It binds man through indulgence,

indolence and slothfulness.

Chapter 14 Shloka 8

तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्।

प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत।।८।।

The Lord says, “O Arjuna, now understand the attributes of the quality of tamas.”

Know that the quality of tamas is born of ignorance and deludes all beings. It binds man through indulgence, indolence and slothfulness.

The moment attachment to the gross body prevails:

a) the quality of tamas is born;

b) ignorance takes birth;

c) moha erupts.

Kamla, this moha and ignorance also exist in the other two categories of beings – the satoguni and the rajoguni. However, the individual in whom satoguna predominates, is ready to sacrifice all. Where rajoguna predominates, the person lives only for the satiation of his desires, whereas the tamoguni is dominated by animal-like tendencies. Every individual possesses all the three qualities in varied ratio.

The attribute of tamas

1. Tamas originates when the attributes of sattva and rajas are suppressed.

2. Indulgence and laziness are the offspring of tamas.

3. Foolishness is the result of tamas.

4. All reactions that are born of ignorance are indications of tamas.

5. Moha is caused by tamas.

6. People who are governed by this attribute are devoid of any thought or considerations.

7. They deride and criticise others.

8. They are stubborn and obstinate.

9. They bear ill will towards others.

10. They can never forgive.

11. Blindness, arrogance and false pride are their characteristics.

12. They are oblivious to their duties.

13. They are bloated with false pride.

14. They are ever anxious and sorrowful.

15. They tread the path that is contrary to dharma.

16. They possess an evil intellect and indulge in wicked acts.

17. This attribute leads a person away from purity and cleanliness.

18. The job of this attribute is to give pain and sorrow to others.

19. It gives rise to the desire to control others.

20. It prevents one from understanding reality.

21. This attribute annihilates every trace of knowledge.

22. No one else is a human being for the one in whom this attribute predominates.

23. ‘I can destroy everybody’ – only the tamoguni can indulge in such a thought.

The one who is predominantly sattvic, gives of himself in order to save the other. The one in whom the attribute of rajas predominates, strives only to take from another. The man with a tamsic nature wants to snatch away the other’s rights and possessions, because he does not even consider the other to be a human being. It is impossible for him to ever comprehend the knowledge of the gunas, because he is an escapist.

The attribute of tamas makes a man:

a) indifferent and inconsiderate towards others;

b) devoid of any sense of duty;

c) an escapist;

d) slothful and unwilling to do any work;

e) devoid of a sense of responsibility.

Now mark the difference between the qualities of sattva and tamas.

1. The attribute of sattva renders a man indifferent to his own self. The one who is essentially tamsic becomes indifferent to others.

2. Satoguna makes a person conscious of his duty whereas tamoguna strips him of any sense of duty.

3. The one who is sattvic is the benefactor of all. The tamsic individual does nothing beneficial for others.

The tamsic individual takes enormous pride in his body self and in his own attributes. He is proud of his knowledge, therefore he often changes its connotations and thus promotes ignorance. In fact the knowledge of the tamoguni is nothing but ignorance, because it draws the individual away from humility. The attribute of tamas fills the individual with indolence and makes him lazy towards the fulfilment of duty and asleep towards the Truth.

अध्याय १४

तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्।

प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत।।८।।

भगवान कहते हैं, ‘ले अर्जुन! अब तू तमोगुण के लक्षण सुन ले!’

शब्दार्थ :

१. तमोगुण को तू अज्ञान जन्य जान।

२. सब जीवों को यह मोहित करता है,

३. यह प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा इस जीवात्मा को बांधता है।

तत्त्व विस्तार :

जिस पल जड़ तन से संग हुआ,

क) तमो गुण उत्पन्न हो जाता है।

ख) अज्ञान का जन्म हो जाता है।

ग) मोह प्रदुर हो जाता है।

कमल! यह मोह और अज्ञान तो सतोगुणी और रजोगुणी में भी हैं। सतोगुणी अपना बलिदान देना चाहते हैं। रजोगुणी अपनी कामना पूर्ति के लिये जीते हैं। तमोगुणी पशु भावना में जीते हैं।

भाई! सबके पास तीनों गुण होते हैं, कोई गौण और कोई प्रधान।

तमोगुण :

1. तमोगुण सत् और रज को दबा कर उत्पन्न होता है।

2. प्रमाद और आलस्य तमोगुण के जाये हैं।

3. मूढ़पन तमोगुण की देन है।

4. अज्ञान जनित प्रतिक्रिया तम का चिन्ह है।

5. मोह, तमोगुण के कारण होता है।

6. ये तमोगुणी लोग बिन सोच विचार के होते हैं।

7. ये तमोगुणी लोग तिरस्कार करने वाले होते हैं।

8. हठीले तथा ज़िद करने वाले गुण तमोगुण की देन है।

9. यह गुण नित्य दूसरे का अनिष्ट चाहने वाला है।

10. नित्य माफ़ न करने वाला गुण तमोगुण जनित है।

11. अंधापन, दम्भ, दर्प पूर्णता, तमोगुण जनित है।

12. कर्तव्य से अनभिज्ञता तमोगुण जनित है।

13. महा अभिमानी लोग तमोगुणी हैं।

14. अति शोक ग्रसित लोग तमोगुणी हैं।

15. अति चिन्तापूर्ण लोग तमोगुणी हैं।

16. अधर्म पथ पथिक लोग तमोगुणी हैं।

17. दुष्ट बुद्धि, दुष्कर्मी लोग तमोगुणी हैं।

18. तमोगुण शौच और पावनता से दूर ले जाने वाला गुण है।

19. सबको दुःख देना, यह तमोगुण का काम है।

20. दूसरे पर निरन्तर काबू पाने की चाहना तमोगुण के कारण होती है।

21. इस गुण के कारण वास्तविकता की समझ ही नहीं रहती।

22. तमोगुण की प्रधानता में ज्ञान का तो नामोनिशान ही नहीं रहता।

23. इस गुण वाले के लिये दूसरा इन्सान ही नहीं है।

24. ‘मैं जहान को मार सकता हूँ’ ऐसा भाव तमोगुण में ही है।

सत् वाला अपना आप देकर दूसरे को बचाता है। रज वाला दूसरे से केवल लेना चाहता है। तम वाला दूसरे का सब कुछ छीन लेना चाहता है, वह दूसरे को इन्सान ही नहीं मानता। यह गुण ज्ञान को समझ ही नहीं सकता, क्योंकि यह छुटकारा पाने की वृत्ति पूर्ण है।

यह गुण जीव को :

क) औरों के प्रति उदासीन बनाता है।

ख) कर्तव्य के प्रति उदासीन बना देता है।

ग) पलायनकर बना देता है।

घ) काम करने से रोकता है।

ङ) ज़िम्मेवारी नहीं लेने देता।

अब सतोगुण और तमोगुण का भेद समझ ले!

1. सतोगुण जीव को अपने प्रति उदासीन बनाता है। तमोगुणी जीव दूसरे के प्रति उदासीन होते हैं।

2. सतोगुण जीव को कर्तव्य परायण बनाता है। तमोगुण जीव को कर्तव्य शून्यता की ओर ले जाता है।

3. सतो गुण जीव का हित करता है, तमोगुणी किसी का हित नहीं करते।

तमोगुणी पूर्ण देह अभिमानी होते हैं, गुण अभिमानी होते हैं। वे अपने ज्ञान का भी गुमान करते हैं; इसी कारण ज्ञान का भी अर्थ बदल देते हैं और अज्ञान वर्धक बन जाते हैं। तमोगुणी का ज्ञान वास्तव में अज्ञान ही है, क्योंकि वह जीव को झुकाव से दूर ले जाता है। यह तमोगुण ही जीव में प्रमाद, कर्तव्य के प्रति आलस्य और सत् के प्रति निद्रा से बांधता है।

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