अध्याय ८
शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगत: शाश्वते मते।
एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुन:।।२६।।
अब भगवान कहते हैं, शुक्ल और कृष्ण पक्ष अनादि हैं।
शब्दार्थ :
१. क्योंकि, जगत के यह दो प्रकार के शुक्ल और कृष्ण पक्ष सनातन माने गये हैं,
२. एक द्वारा (पथिक) परम पद को पाते हैं
३. और दूसरे के द्वारा फिर से जन्म मृत्यु को पाते हैं।
तत्व विस्तार :
शुक्ल पक्ष :
प्रथम समझ कि शुक्ल पक्ष क्या है :
क) यह विशुद्ध उज्ज्वल पथ है।
ख) यह उत्तरायण पथ है।
ग) यह श्रेयस्कर पथ है।
घ) जो आत्मा की ओर ले जाये, यह वह पक्ष है।
ङ) बुद्धि सत्मय जो करे, यह वह पथ है।
च) यह चेतन की ओर ले जाने वाला पथ है।
छ) यह सत् सों योग करवाने वाला पथ है।
ज) यह संग अभाव करवाने का पथ है।
झ) जहाँ मिथ्यात्व का अंधियारा मिट जाये, यह वह पथ है।
ञ) जहाँ ज्ञान विवेकपूर्ण हो जाये, यह वह पथ है।
ट) इस पक्ष में जीवन यज्ञमय हो जाता है।
ठ) इस पक्ष में जीवन मंगलमय हो जाता है।
ड) जिसमें साधक जग के लिये जागृत रहता है, यह वह पक्ष है।
ढ) जिसमें वह अपने प्रति मौन रहता है, यह वह पक्ष है।
नित्य समाधिस्थ जो बना दे, गुणातीत जो बना दे, ब्रह्म की ओर जो ले जाये, जीवत्व भाव जो मिटाये, परम में जो स्थित करवा दे, देवत्व, अमरत्व जो दिला दे, जो आत्मा में स्थित करा दे, उसे शुक्ल पक्ष कहते हैं।
कृष्ण पक्ष
1. शुक्ल पक्ष के विपरीत जो भी कदम हो,
2. अंधियारा वर्धक जो भी हो,
3. जहाँ इन्द्रिय विषय संयोग हो,
4. जहाँ लोभ, लोलुपता पूर्ण चाहना बढ़े,
5. सत् से जो वियोग कराये,
6. जो कामना पूर्ण हर कर्म करवाये,
7. जो अहंकार, दम्भ, दर्प पूर्ण बना दे,
8. जो मृत्यु की ओर ले जाये,
9. मोह और अज्ञान वर्धक जो हो,
वह कृष्ण पक्ष ही होता है।
शुक्ल पक्ष के अन्तर्गत राम (सत्) का जन्म होता है, कृष्ण पक्ष में असुर (मोह) जन्म लेते हैं।